Monday 26 October 2015

पहाड़ को काटकर सड़क बनाने वाले बिहार के मांझी के नक्शेकदम पर चलकर उत्तराखंड के मांझी ने भी अपने लिए खुद रास्ता बनाया है। यह बात अलग है कि माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने 22 साल तक अकेले मेहनत कर रास्ता बनाया था लेकिन यहां के मांझी ने पहाड़ पर बसे दो गांवों को जोडऩे के लिए महज 10 दिन में तीन किलोमीटर लंबी सड़क बना दी। इसके लिए उन्होंने हर दिन 8-9 घंटे मिलकर काम किया। वन अधिकारी इस सड़क की योजना पास करने में काफी देर कर रहे थे। इससे आजिज कर्णप्रयाग जिले के आसपास के गांवों के करीब 300 ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से सड़क बनाने की ठान ली।

वन विभाग से मंजूरी मिलने के बाद भी नहीं बन रही थी सड़क
एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक राजधानी देहरादून से करीब 200 मिलोमीटर दूर इस सड़क को भटक्वली, चोरासैन और बैनोली गांव के लोगों ने बनाया है। इन गांवों की ऊंचाई समुद्रतल से 5,000 से 7,000 फीट है। यहां एक गांव से दूसरे गांव जाने में लोगों को काफी मुश्किलें पेश आती थीं। उन्हें काफी घूमकर जाना पड़ता था। ये ग्रामीण लंबे समय से इस सड़क के बनने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन वन विभाग की ओर से हरी झंडी नहीं मिलने से उनकी दिक्कतें दूर नहीं हो रही थीं।

बिना एक भी पेड़ काटें बनाई सड़क
वन विभाग सड़क की इस योजना को इसलिए मंजूरी नहीं दे रहे थे क्योंकि उसे डर था कि इससे पेड़ काटने पड़ेंगे। वन विभाग के इस डर को दूर करते हुए ग्रामीणों ने सड़क बनाने के लिए एक भी पेड़ नहीं काटा। उन्होंने हर दिन 8-9 घंटे मिलकर काम किया। सड़क निर्माण में योगदान देने वाले 56 साल के कुंवर सिंह ने कहा, हम भी पर्यावरण की रक्षा में विश्वास रखते हैं। सेवानिवृत्त कुंवर ने कहा कि निर्माण शुरू करने से पहले ही हमने तय कर लिया था कि एक भी पेड़ नहीं काटेंगे। संयोगवश सड़के के रास्ते में अधिक पेड़ नहीं थे और सड़क इस तरीके से बनाई गई जिससे पेड़ों को नुकसान नहीं पहुंचा।
सरकारी प्लान के मुताबिक बनाई सड़क
सड़क निर्माण में आगे रहने वाली पुष्पा देवी ने बताया, ग्रामीणों ने एक सभा कर सड़क खुद बनाने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि हमने अधिकारियों द्वारा तैयार किए गए सर्वे योजना के मुताबिक काम किया। सड़क निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सभी सामग्री प्राकृतिक थी। पत्थरों और पहाड़ के किनारों से मिलने वाली मिट्टी का इस्तेमाल सड़क के दोनों ओर पत्थर की दीवार को बनाने में किया गया। ग्रामीणों ने अपना समय और श्रम दिया और सड़क निर्माण में ज्यादा खर्च नहीं हुआ ... बिहार के नहीं ये हैं उत्तराखंड के Manjhi

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