Monday 5 October 2015

जयपुर बाल मजदूरों की बड़ी मंडी बनता जा रहा है। इस खौफनाक सच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाल तस्करी के मामले में राजस्थान देशभर में तीसरे नंबर आ गया है। बच्चों की मासूमियत बेचने के लिए कुछ इलाकों में बाकायदा बच्चों की गुपचुप मंडी तक लगाई जाती है, जहां बच्चे के 'नरम हाथों की परख' करके उसके दाम लगाए जाते हैं।



जितना नरम हाथ होता है, बोली भी उतनी ही ऊंची लगती है। इस एवज में उस बच्चे को 800 से 2000 रुपए प्रतिमाह दिया जाता है, ये भी टुकड़ों-टुकड़ों में।

यूं चलता है खौफ का खेल

बच्चों की खरीद फरोख्त का यह काला धंधा बिहार के पटना, गया और सीतामढ़ी जिलों से शुरू होकर जयपुर में पनप रहा है। जयपुर में लाए जा रहे बच्चों में 98 प्रतिशत बच्चे बिहार से जबकि 2 प्रतिशत पश्चिम बंगाल, झारखंड व उत्तर प्रदेश से आते हैं।

इस धंधे में लगे दलाल इन बच्चों के मां-बाप को मात्र 800 रुपए से अधिकतम 5000 रुपए देकर उसकी बेहतर शिक्षा और काम दिलाने का जिम्मा लेने की बात कहकर उसे अपने साथ भेजने के लिए राजी करते हैं। गरीबी से तंग मां-बाप अपने बच्चे को इतनी मामूली सी राशि में ही भेज देते हैं। ये दलाल इन बच्चों को फिर स्थानीय दलाल को दोगुनी कीमत में बेचता है।

ये बच्चे को लेकर ट्रेन से जयपुर आता है और रेलवे स्टेशन पर बाल श्रमिकों को खरीदने बेचने वाली लॉबी के दूसरे दलाल को तीन गुना कीमत में बच्चा बेचता है। यहां से बच्चा जयपुर की उन चुनिंदा बस्तियों में लाया जाता है, जहां पर इनकी 'फाइनल बोलीÓ लगाई जाती है और चार से पांच गुना कीमत वसूली जाती है।

हर साल बढ़ रहे मुक्त होते बच्चे

बाल निदेशालय व गांधी नगर स्थित बाल कल्याण समिति के समक्ष पिछले पांच साल में 2 हजार 143 बाल श्रमिक पेश किए गए हैं। ये सभी बच्चे मुक्त कराए जाने के बाद अपने परिवार के सुपुर्द कर दिए गए हैं, जबकि पूरे राज्य में यह आंकड़ा 10, 000 से भी अधिक है।

जनगणना-2011 का खुलासा

बाल मजदूरी कराने में देश में राजस्थान का तीसरा स्थान है यहां पर 5 से 14 साल के करीब साढ़े 8.50 लाख बच्चे बाल श्रमिक हैं। वहीं राजधानी जयपुर 10 प्रतिशत बाल मजदूरी कराने में देश में प्रमुख केंद्र है।
जयपुर में यहां घुटता है बच्चों का बचपन

भट्टा बस्ती:  यहां पर 60 फीसदी बच्चे चूड़ी बनाने के कारखानों में काम पर लगाए जाते हैं।

नाहरी का नाका:  लाख के कंगन में बारीक पत्थर (स्टोन्स) लगाने के काम यहां बाल मजदूर करते हैं।

हसनपुरा: कंगन में पत्थर जड़ाई करने का काम करवाया जाता है।

रामगंज: आरीतारी का काम करवाया जाता है।

खो नागोरियान : यहां भी चूड़ी, गलीचा बनाने के काम बाल मजूदरों के हवाले है।

कानोता:  कंगन जड़ाई के काम में बच्चों के नरम हाथों का उपयोग किया जा रहा है।

इन इलाकों में दलाल बच्चों को लेकर आते हैं फिर जरूरत के हिसाब से इन्हें काम में धकेल दिया जाता है और इस एवज में इस अंतिम दलाल को 25 से 40 हजार रुपए प्रति बच्चे पर कमाई हो रही है।

Source : http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/rajasthan/rajasthan-is-third-in-the-case-of-child-trafficking-1356101.html

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